तस्वीरों में देखिएः जावेद अख्तर जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में ?
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में पहुंचे जावेद अख्तर, गुलजार, प्रसून जोशी और विशाल भारद्वाज के साथ की कहानी पर चर्चा
जयपुर। लिटरेचर फेस्टिवल के चौथे दिन सोमवार को गीतकार और लेखक जावेद अख्तर भी भाग लेने पहुंचे। कहानी किसको कहते हैं सेशन में उन्होंने गुलजार, प्रसून जोशी और विशाल भारद्वाज के साथ कहानी पर लंबी बात की। इस सेशन में एक घंटा पहले से ही लोग जुटने लगे। कहानी क्या है के बारे में जावेद अख्तर ने कहा कि कहानी जब लिखी जाती है तो उसमें रहस्य और रोमांस होना चाहिए। लोगों को कुछ प्रेरणा मिलनी चाहिए। वो मौके साफ हों, जिनके लिए कहानी कही जाती है और ज्योग्राफी सपष्ट होनी चाहिए। किसी इलाके की बात की जा रही है।
यहां पर इस पर भी बात हुई कि कहानी का नायक मांग और मोरेलिटी को लेकर चलता है। साथ ही यह भी कहा कि कहानियां समय के साथ बदलती रहती हैं। कहानियों के मोरल बदलते रहते हैं। समाज में भी मोरेलिटी बदलती रहती है।
फिर यह चर्चा चली फिल्मी कहानियों की तरफ, जहां वक्ताओं ने चिंता जताई कि इन दिनों जो कहानियां आ रही हैं उनका वजन कम है। हमारे यहां फिल्मी कहानी की विरासत है। हमारे देश की नौटंकी, मेले और स्वांग थे, जो कहानियां कही जाती थीं, उनकी समृद्ध परंपरा ही फिल्मों में आई । ऐसा नहीं है कि हालीवुड से हमने कहानियां ली हों। यह परंपरा आगे तक जानी चाहिए।
जयपुर। लिटरेचर फेस्टिवल के चौथे दिन सोमवार को गीतकार और लेखक जावेद अख्तर भी भाग लेने पहुंचे। कहानी किसको कहते हैं सेशन में उन्होंने गुलजार, प्रसून जोशी और विशाल भारद्वाज के साथ कहानी पर लंबी बात की। इस सेशन में एक घंटा पहले से ही लोग जुटने लगे। कहानी क्या है के बारे में जावेद अख्तर ने कहा कि कहानी जब लिखी जाती है तो उसमें रहस्य और रोमांस होना चाहिए। लोगों को कुछ प्रेरणा मिलनी चाहिए। वो मौके साफ हों, जिनके लिए कहानी कही जाती है और ज्योग्राफी सपष्ट होनी चाहिए। किसी इलाके की बात की जा रही है।
यहां पर इस पर भी बात हुई कि कहानी का नायक मांग और मोरेलिटी को लेकर चलता है। साथ ही यह भी कहा कि कहानियां समय के साथ बदलती रहती हैं। कहानियों के मोरल बदलते रहते हैं। समाज में भी मोरेलिटी बदलती रहती है।
फिर यह चर्चा चली फिल्मी कहानियों की तरफ, जहां वक्ताओं ने चिंता जताई कि इन दिनों जो कहानियां आ रही हैं उनका वजन कम है। हमारे यहां फिल्मी कहानी की विरासत है। हमारे देश की नौटंकी, मेले और स्वांग थे, जो कहानियां कही जाती थीं, उनकी समृद्ध परंपरा ही फिल्मों में आई । ऐसा नहीं है कि हालीवुड से हमने कहानियां ली हों। यह परंपरा आगे तक जानी चाहिए।
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